वह खिडकियों से झाँकना,
गुजरूँ तो राहें तांकना…
वह पूछना हालो-हवाल,
इसकर बहाने ढूँढना…
नजरंदाज कर मेरे सवाल,
आँखों (में) पहेलियाँ बूझना…
वह बात करके यार की,
मेरे इरादे भाँपना…
‘हम नहीं तेरे कोई’,
कहकर लटाएं सँवारना…
नाराज होऊं जो कभी,
वह नाराजगी से ही रूठना…
मुझे याद है हर एक बात,
और इल्म है ज़ज्बात का…
पर क्या करें, यह रीत है–
हो इकरार जब, तभी प्रीत है!…